यूँ ही हो जाता है कवि कोई
निकल पड़ते हैं स्वर ऐसे
नदी में उठे कोई लहर जैसे
कवि का लिखना भर काम है
कुछ लिखे कविता उसका नाम है
अर्थ अनर्थ पाठक करें
हम क्यों इस पचड़े में पड़ें
सुन कर फिर चाहे वो झल्लायें
या पढ़ कर सर खुजाएँ
नाम छपने भर की अपनी मंशा है
छप जाए यही कविता की प्रशंसा है
लेखनी जो अब चल पड़ी है
कविता अपनी निकल पड़ी है
अब भेजा है जो उनको अपनी रचना
देखें संपादक जी का क्या जवाब आता है
खुश होकर छापते हैं, या कहें-
मत लिख ऐसी कविता नाम खराब होता है..
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