Saturday, 1 October 2011

काहे का कवि

अनायास ही निकलती है कविता 
यूँ ही हो जाता है कवि कोई 
निकल पड़ते हैं स्वर ऐसे 
नदी में उठे कोई लहर जैसे 
कवि का लिखना भर काम है 
कुछ लिखे कविता उसका नाम है 
अर्थ अनर्थ पाठक करें 
हम क्यों इस पचड़े में पड़ें 
सुन कर फिर चाहे वो झल्लायें 
या पढ़ कर सर खुजाएँ 
नाम छपने भर की अपनी मंशा है
छप जाए यही कविता की प्रशंसा है 
लेखनी जो अब चल पड़ी है 
कविता अपनी निकल पड़ी है 
अब भेजा है जो उनको अपनी रचना 
देखें संपादक जी का क्या जवाब आता है
खुश होकर छापते हैं, या कहें-
मत लिख ऐसी कविता नाम खराब होता है..

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