Saturday, 1 October 2011

बरसात की रात

घुप्प उस अँधेरे में
काली उस रात में
गरजते उमरते बादलों में
घनघोर उस बरसात में
पसरे उस सन्नाटे में










निकलता था कोई संगीत 
बूंदों के टपकने से 
पत्तों में हवाओं के सरकने से 
आसमां में बिजली के कड़कने से 
और खामोशी में दिलों के धड़कने से 

ऐसे में मैं बैठा था,
अकेले में तन्हाई में
जाने सोच की किस गहराई में 
प्यार में, की रुसवाई में 
सोचना फ़िज़ूल था, मज़ा है,
सोने में, तानकर रजाई में /

No comments:

Post a Comment