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काली उस रात में
गरजते उमरते बादलों में
घनघोर उस बरसात में
पसरे उस सन्नाटे में
निकलता था कोई संगीत
बूंदों के टपकने से
पत्तों में हवाओं के सरकने से
आसमां में बिजली के कड़कने से
और खामोशी में दिलों के धड़कने से
ऐसे में मैं बैठा था,
अकेले में तन्हाई में
जाने सोच की किस गहराई में
प्यार में, की रुसवाई में
सोचना फ़िज़ूल था, मज़ा है,
सोने में, तानकर रजाई में /
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