जिंदगी कहाँ जा रही है मेरी
मुझे जब रास्ते का पता ही नहीं.
मंजिल ही रास्ता है या रास्ता ही मंजिल
कोई बता दे मुझे .
मैं यूँ ही चला था
मेरे जीवन में ध्रुवतारा कहाँ था.
संभल के चल सकता था
मगर सहारा कहाँ था.
मुझे जब रास्ते का पता ही नहीं.
मंजिल ही रास्ता है या रास्ता ही मंजिल
कोई बता दे मुझे .
भटका हुआ मुसाफिर हूँ अब,
राह नयी दिखा दे मुझे.
पक्की सड़कें अब भाती नहीं मुझे,
जंगल का पता कोई दे दे मुझे.
मैं यूँ ही चला था
मेरे जीवन में ध्रुवतारा कहाँ था.
संभल के चल सकता था
मगर सहारा कहाँ था.
हमसफ़र नहीं जीवन में कोई भी
अकेला भी कहाँ तक चलूँ मैं?
पहिये का सहारा चाहिए अब
दो पांव से कब तक चलूँ मैं.
दास्ताँ अपनी अलग है,
तुम से कहाँ तक कहूँ मैं,
दिल पत्थर बन गया..
दर्द कब तक सहूँ मैं.......
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 19 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteवाह वाह वाह वाह
ReplyDelete